साल-दर-साल ज़िन्दगी एक ग्लेशियर जैसे पिघल रही है । ग्लेशियर भी इतना विशाल और ज़िद्दीला किस्म का जो ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा , जबकि इसके ख़त्म होने से धीरे-धीरे एक दुनिया डूब रही है।
कुछ कागज़ टेबल पर बेतरतीब पड़े थे।जिनपर एक गर्द की परत जम गयी थी।सफाई और सलीके जैसा कुछ ना रहा था ना ज़िन्दगी में ना कमरे में।2-3 ख़त्म हुई पेन और एक भरी हुई ऐश ट्रे,कुछ अधजली सिगरेट और 1 माचिस,कुछ ख़ाली शराब की बोतलें,जिनमे कुछेक कतरा शराब मुश्किल वक़्त के लिए बचा रखी थी।
इसके अलावा अच्छी मुलाक़ातों, यादों की कतरनें और कुछ ग़मज़दा शिक़वे-शिकायते , कुछ सवाल जिनके जवाब अब कभी नहीं मिलने थे।
सब एक टेबल और 10×12 के कमरे में पसरे थे।
मन को लोगों से एक नाउम्मीदी हो चली थी। कपड़ों से आती बासी पसीने की गंध और सिगरेट के धुएं के बीच अचानक आईने पर नज़र पढ़ी तो पाया कि चेहरे पर कुछ सवालिया भाव और एक अजीब सी तन्हाई थी जो अरसे से मौजूद थी ।
"शायद अब रुक जाना चाहिए"
मैंने ख़ुद से पूछा। एक अधूरा काम जो मैं पूरा नहीं कर पा रहा था। यूँ भी मैंने आजतक कोई काम पूरा नहीं किया कभी। पर इस बार चाहना थी के पूरा ज़रूर करूँगा।कुछ सवाल थे।अजीब-से सवाल जिनके जवाब कहीं मिल नहीं पाये। क्या-क्या पैतरे नहीं आज़माए मैंने। अब हारकर ये भी अधूरा छोड़ना है।
हम सभी एक ऐसी कहानी के किरदार है जिसमें एक मदारी है जो ज़िन्दगी है और
हम उसकी साँकल से बंधे बंदर। अपना पेट भरने की ख़ातिर हम ज़िन्दगी के मुताबिक़ तमाशा करते है। और जब थक जाते है तो किसी और कहानी में तमाशा कर रहे होते है। सिलसिला कभी ख़त्म नहीं होता।
पर कोई तो जवाब होंगे इन सवालों के यूँ कब तक अधूरापन सहे कोई।
ऐसे ही जवाब ढूँढने की ज़द में पागलपन बढ़ता जा रहा था।थक-हारकर उसने अपनी डायरी निकाली जो सीलन से बुरी तरह ज़ख़्मी थी,बिल्कुल वैसे है जैसे उसका अंतर्मन होता जा रहा था। कुछेक पन्ने तेज़ी से पलटते हुए डायरी में रखे एक ख़त पर उसकी नज़र थम गयी।
आँखें कुछ फैल गयी।दिल ज़ोरों से धड़कने लगा।उँगलियाँ आश्चर्य के मारे आपस में उलझ गयी। एक अजीब सी चुप्पी।जल्दी से कुछ पढ़ने के लिए साँसे रोक ली गयी।रोंगटे खड़े होने लगे।
लिखा था..... "अब शायद ये हमारा आख़िरी न्यू ईयर हो हम अब कभी नहीं मिलेंगे । तुम्हें वो पसन्द नहीं करते बिल्कुल भी। और मुझे ज़िन्दगी तो उन्ही के साथ बितानी है । मजबूर हूँ । तुम्हारा यहाँ तक साथ देने का शुक्रिया। अबसे मुझे ख़ुद वक़्त पर खाना वगैरह याद रखने होंगे,तुम ज़हमत मत करना।और प्लीज् कभी कॉल या msg तो बिल्कुल भी नहीं।अच्छा ख़याल रखना अपना।वो आ गए है रिप्लाई मत करना।आख़िरी बार लव यू।"
डाईरी कुछ 2-3 साल पहले की थी। जिसमे वो सारी बातें दर्ज़ थी जो उसके दिमाग़ से मिट चुकी थी।
ज़िन्दगी और वक़्त की रवानी में वो कब इतना बदलता गया उसे याद ही ना रहा।
पर वो आगे बढ़ गया था।और इतना बुरी तरह के अब पीछे जाना मुमकिन नहीं था शायद।
इस ख़त को आज देखा तो कई बातें ज़हन में आई।दिमाग़ पर ज़ोर डालने से एक धुंधला चेहरा याद आया।थोड़ी और ज़हमत उठाई और फोनबूक टटोली,एक नंबर जो "ज़िन्दगी" नाम से दर्ज़ था कॉल किया। स्विच ऑफ आया। कुछ दोस्तों से हाल जाना, पर ये क्या वक़्त ने एक और तमाचा उसे जड़ दिया। पता चला के वो जिसके लिए छोड़ गयी थी।कमीना निकला।और शादी से मना करके भाग गया।इधर मुहब्बत के वो पल फिर जवां होने लगे थे।पर उसके दिल में मुहब्बत किसी नए मटके की तरह वक़्त के साथ रिसते हुए कम भी हुई थी।
जिन बातों को भूलने का हम कभी सोचते नहीं हालात उन चीजों को भी भुला ही देता है।ये वक़्त है कब किसी का हुआ है।कोई नहीं रोक पाया इसे।
वो जल्दी से उठा और स्टेशन की तरफ दौड़ पड़ा।जो वक़्त 2 साल में 2 घण्टे जैसे बीत गया वही आज 8 घण्टे का वक़्त रेल में बैठे बैठे 80 सालो सा लगने लगा था। मुश्किल से एक स्टेशन पर उतरकर तेज़ी से भागते हुए।एक कॉल किया और अगले कुछ मिनट में वो अपनी उस "ज़िन्दगी" के साथ एक कैफ़े में था। रात के साढे ग्यारह बज रहे थे शायद। उसके कपड़ो से आती बदबू , बड़ी हुई बेतरतीब दाड़ी,और बाल देखकर आसपास वाले लोगों की शक़ की निगाहें आज उसकी तरफ थी।ये वही शहर था जहाँ कभी उसे एक बड़े लेखक के नाम से पहचाना जाता था। पर वक़्त...क्या भरोसा...वो जिन हालातों से आया था.जिन सवालों का जवाब ढूंढ रहा था वो सारे जवाब आज उसके सामने सशरीर मौजूद थे। सालों बाद उसके चेहरे पर आई मुस्कुराहट के साथ उसने 2 हॉट कॉफ़ी आर्डर की।
याददाश्त लौटने लगी थी।वो सब पल जो साथ जिए गए थे ज़िन्दगी के आख़िरी खूबसूरत लम्हों की तरह।आज उन्हें दोहराया जा रहा था। हॉट कॉफ़ी सर्व हुई। दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखने लगे। फिर खड़े होकर हाथ थामकर किसी ठिकाने पर।
पटाकों की आवाज़ ने चुप्पी तोड़ी।
दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया कहा-"हैप्पी न्यू ईयर"😊
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