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Saturday, May 12, 2018

तुमसे किया वादा निभाऊंगी (भाग-1)

तुमसे किया वादा निभाऊंगी
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                          1
ज़िन्दगी एक रफ़्तार लिए आगे-आगे दौड़ रही थी, जबकि कोई ख़्वाहिश बची नहीं थी जिसके लिए परेशान हुआ जाता। बस कुछेक ज़रूरत भर की ज़िम्मेदारियाँ पुरी करने के लिए क़तरा भर काम थे। अपने पीछे कुछ ज़िंदगियाँ थी, जिसके लिए बचपने और सपनो का मुलायम गला घोंट दिया गया था।
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वो हमेशा सुबह और शाम दहलीज़ पर बैठे हुए सड़क पर आते-जाते लोगों को देखा करती। गली में फुटबॉल खेलते, छतों पर पतंग उड़ाते बच्चों को देख अपने बचपन के दिनों को याद कर मीठी-सी यादों में गुम हो जाती। कुछ दोस्त जो उसने एक-एक कर अपने से दूर कर दिए थे , उनकी ख़ुशनुमा ज़िन्दगी के कयास लगाती रहती और अपनी ज़िन्दगी के सबसे प्यारे लोगों को जो अब उसकी ज़िन्दगी का हिस्सा नहीं रहे थे, सोचकर गाल भिगोती।

वो अपने मन में कल्पनाएँ कर कहीं दूर मस्ती के पल सोचती। अब वैसे दिन नहीं होते हैं जब दोस्तों से बात हो या कहीं घूमने जाने की योजनाएं बने ।

वो कभी ऐसी नहीं थी और उसे होना भी नहीं चाहिए था, वो कभी अपने चुलबुलेपन और नटखट मिज़ाज से कई दिलों को लूट लिया करती थी । आँखों में सिर्फ काजल या आई लाइनर और हल्का-सा मैकअप । बातें बच्चों सी बिल्कुल। हंसे तो फूल खिल पड़े; रोये तो बिजलियाँ कौंध जाये।
वो हमेशा उल्लास से भरी रहती। कभी रुकने का नाम नहीं कहीं। बड़े-बड़े सपने।
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एक दिन ऐसे ही किसी बात पर हँसते हुए अचानक चुप हो गयी। आँख से आँसू चू पड़ा।
वाक़ई तब लगा कि छोटी-सी ज़िन्दगी और मौज मस्ती की उम्र में ज़िम्मेदारियां भी हो सकती है। फिर कुछ दिन उसे देखा नहीं किसी ने। अगली बार जब मिली तो एकदम दुबली-पतली सी। आँखों में काजल फैला हुआ और ना बातों में वो बात। हम सब अब भी कूल ड्यूड बने थे। पर वो वक़्त से पहले बड़ी हो चुकी थी।
हर दफ़ा से उलट इस बार बात करते हुए वो भावुक नहीं हुई। मैं एकटक उसकी बातें सुन रहा था, बीच-बीच में गाल भिगोकर उसके दुपट्टे के किनारों से आँखों को पोंछता हुआ। वो मुझे ज़िन्दगी के दूसरे पहलू समझाती हुई कि ये सब उसके लिए कितना ''नॉर्मल'' है और मेरे नहीं समझने पर उसकी आँखों से मोतियों की धार फूट  पड़ी ।
उसने वादा लिया कि तुम्हारा एक भी आँसू अगर  आँख से बाहर आया तो मेरी आँखों से सैलाब फूट पड़े। अब दोनों चुप थे।

अचानक ज़िन्दगी में कुछ और तब्दीलियां हुई पर हम अपने अंदर रोना सीख चुके थे ।।
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-नितेश✉

ना अपने बारें में ना तुम्हारे.. दुनिया के किसी हिस्से की बात!

ये भी मुमकिन है कि आँखें हों तमाशा ही न हो  रास आने लगे हम को तो ये दुनिया ही न हो    टकटकी बाँध के मैं देख रहा हूँ जिस को  ये भी हो सकता है...