ब से बारिश....
शाम के वक़्त अक्सर बारिश भी प्रेम करने वालों पर मेहरबान हो जाती है..थोड़ी-बहुत नहीं घनघोर बारिश..!!!
मैं कभी-कभी ऐसी बारिशों में उसे स्टॉप तक छाता लेकर लेने जाया करता था। वैसे स्टॉप और मेरे फ़्लैट की दूरी महज़ 500 मीटर की रही होगी, जिस तक पहुँचने में कुछ 5-6 मिनट का वक़्त लगता था। बारिश के दिनों में पूरी कॉलोनीज़ के रोड़ पर पानी घुटनों तक भरा होने के कारण ये वक़्त बढ़कर 10-12 मिनट हो जाया करता था। जब भी ऐसे वक़्त उसे लेने जाना हो वक़्त फिर सिमटकर 5-6 मिनट हो जाया करता था।
शायद वो कभी भीग भी जाती तो दुनिया का इतना नुकसान नहीं होता,
लेकिन उसके भीगने की वजह से हम दोनों एक साथ बीमार नहीं होना चाहते थे।
शुरुआती एक-दो कॉल के बाद मैं उसके बिन बुलाये ही छाता लेकर उसे लेने पहुँचने लगा। यहीं जुलाई की शामें थी।
एक ऐसी शाम थी। जब बहुत तेज़ बारिश हो रही थी। अचानक मुझे याद आया कि उसके ऑफ़िस से आने का वक़्त हो गया है। मैं नींद से उठा छाता लेकर निकल पड़ा। जहाँ आम तौर पर बारिश में उसके लिए मैं ये दूरी 5-6 मिनट में तय कर आज 2 से 3 मिनट ही लगे थे। पता नहीं कैसे पर शायद प्यार सचमुच दूरी, समय सब कम कर देता है। आपको एहसास भी नहीं होता कि आप कितना सफ़र तय कर चुके हैं।
मैं स्टॉप पर खड़ा रहा।वो नहीं आई।मैं बार-बार टाइम देख रहा था..10 मिनट.....15 मिनट..20 मिनट...30 मिनट.. हो सकता है आज लेट हो गयी हो और मेरे दिमाग मैं ये ख़याल भी नहीं आया कि एक फ़ोन कर लूँ, ये तो एक बहुत आम-सी बात थी,पर पता नहीं क्यों मैंने नहीं सोचा।
40 मिनट...42 मिनट..45 मिनट।
अब मेरे दिल की धड़कनें बढ़ने लगी। वो नहीं आई, आती भी कैसे।
46 मिनट.. 47 वें मिनट मुझे अचानक जब कुछ याद आया, दिमाग़ ने काम करना शुरू किया, तब मेरे पैरों से ज़मीन खिसक गई।
क्या? तो क्या ये दो साल पहले की बात है जब मैं उसे यहाँ लेने आया करता था। उसे शहर छोड़े हुए 17 महीने हो गए हैं और मैं उसका इंतज़ार इस स्टॉप पर कर रहा था।
प्यार में सचमुच वक़्त का पता नहीं चलता। अब भी वो मुझसे बहुत दूर किसी शहर में है, पर लगता है यहीं तो है।
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न से नितेश
#दुलप्रेक (दुःखभरी लघु प्रेम कथा)