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Tuesday, March 13, 2018

मेरी आँखें _आँसू तुम्हारे

उसकी आँखों में साफ़ दिखाई दे रहा था कि वो रोना चाहती थी,ख़ूब रोना चाहती थी। मगर वो दुनिया के सामने ख़ुद को कमज़ोर ना बताने की कोशिश  में  कभी रो नहीं पाई। जब भी उसकी रोने की बारी आती वो हर बार धोखा देकर उन आँसुओ को सम्भाल कर रखती और फिर जैसे ही तन्हा होती ख़ूब रोती, सिसक-सिसक कर रोती।
उसे लगता था कि ये उसके सब्र का इम्तिहान है, पर वो नहीं जानती थी कि वो इसमें असफल हो चुकी है ।

मैं रोया उसकी तरफ से,, इसलिए नहीं कि मैं कमज़ोर पड़ गया था। मैं चाहता था कि मैं उसे बता पाऊँ कि तुम्हें रोने की ज़रूरत नहीं है,,!!
***
सुनो..!! तुम मत रोना कि रो रहा हूँ मैं तुम्हारे हिस्से का..
सुनो..!!तुम मेरी हिस्से की हँसी हँसती हुई अच्छी लग रही हो..!!
___सिर्फ तुम्हारा..
-नितेश कुशवाह 'निशु'

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ना अपने बारें में ना तुम्हारे.. दुनिया के किसी हिस्से की बात!

ये भी मुमकिन है कि आँखें हों तमाशा ही न हो  रास आने लगे हम को तो ये दुनिया ही न हो    टकटकी बाँध के मैं देख रहा हूँ जिस को  ये भी हो सकता है...