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Monday, April 2, 2018

हारा हुआ आदमी

तुम्हारी ग़ुस्से भरी नाराज़गी से लगता है कि हममें कोई रिश्ता अब भी ज़िंदा है।

भरी दोपहरी।मार्च के आख़िरी दिन। बीमार करने पर उतारू धूप और सन्नाटे में चीख़ती तपन।
दोपहर का एक बजा होगा शायद।
किसी का साथ पाने की ज़िद में पाग़ल हुआ मन। और मेहनत करता शरीर। उस पर रूठी हुई नियति कि मानो चिड़ा रही हो। हर जगह हँसते पहचान के कुछ लोग।
whatsapp पर लगातार ब्लिंक करते msg।
एक हारा हुआ आदमी.....
आसपास से गुज़रते हुए मुसाफ़िर।

एकाएक एक अधेड़ आदमी सड़क पार करते हुए सड़क पर आ रहे ट्रक से जा टकराया। ग़लती ट्रक ड्राईवर की नहीं थी। आदमी की भी नहीं। जैसा नियति ने चाहा वैसा हुआ। ख़ैर है कि उसको बाहरी चोट लगी थी । बाहरी चोट में बचना आसान होता है, मन की चोट के मुक़ाबले।
अचानक याद आ धमका कि ऐसे ही कभी मैं अपना अच्छा वक़्त पार करते हुए तुम्हारी टक्कर की भेंट चढ़ा था। बहुत सी अंदरुनी चोटें मन में पड़ गयी। धीरे-धीरे जब सम्भला तो तुम्हे अपना हमराह बना पाया । हालाँकि कोई कॉन्ट्रैक्ट साइन नहीं किया था। 
वक़्त के साथ बेतरबीती ख़त्म होने लगी। सबकुछ सलिखें से होने लगा। निकल पड़ा ख़ुद को सभ्य और क़ाबिल बनाने के सफर में। आगे के लिए कोई वादा नहीं। वादा अक्सर काबिल लोग करते है , नालायक लोग सरप्राइज देने का सोचते रहते है।
वक़्त बीता।
महीना-दो महीना-एक साल-डेढ़ साल।
काबिलियत जैसी किसी शै का दूर- दूर तक पता नहीं।
एक दिन सब ठीक होने वाला था कि...ख़ैर ग़लती तुम्हारी नहीं थी। तुमने 'आईने' वाला रवैया अपना लिया। धीरे-धीरे तुम्हे एहसास हुआ या यूँ कहे कि हालात मेरे हक़ में होने लगे।
मुझे शौहरत मिलने लगी। सबकुछ ठीक से चलने ही लगा था। कबिलियत के बहुत पास। एकदम पास। 3-4 हाथ की दुरी।
कि फिर वही मनहूसियत।

ख़ैर...तुम्हारी ग़लती नहीं है कोई भी। नियति ने मुँह फेर लिया हमेशा के लिए। एक-एक कर हर उम्मीद टूटती गयी सब कुछ ठीक होने की। मैं कुछ नहीं कर पाया कभी सिवा  तुम्हारे साथ रोने के। एक छोटी सी ख़ुशी मैं दे सकता था , पर फिर से वही। साली क़िस्मत। शायद मैं बहुत कुछ बदल भी सकता था। पर नियति के   इशारे देर से समझा। और एक-एक कर सबकुछ तुम्हारे हाथों से जाता गया। अब करने को कुछ नहीं है बस एक और उम्मीद के। उदास मत हो दिन फिरेंगे किसी दिन। हम जीतेंगे देख लेना। बस तुम हिम्मत मत हारो। कुछ दिन और। अभी बस माफ़ नहीं कर पा रहा ख़ुद को। तुमसे किया वादा गूँज रहा है अब भी। बाकि कोई आवाज़ कहीं से नहीं आ रही।
सब चुप हो गए।

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