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Thursday, March 24, 2022

एंजायटी के दिनों के नोट्स - १

कोई ग़ज़लें सुनाएगा तो मेरी याद आएगी..सुनोगी जब कोई नगमा  तो मेरी याद आएगी.
के जब आएगी मेरी याद तो सोने नहीं देगी, अपनी बाँहों के तकिये से भी मेरी याद आएगी.
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तुम नहीं थी तब जब तुम्हारी सबसे ज़्यादा ज़रुरत थी. जब इंतज़ार था तब नहीं आयी तुम।
 बुरे दिनों की बुरी बात - ये नहीं थी कि दिन बुरे हैं- क्या थी जानती हो?
बुरे दिनों की बुरी बात ये थी कि साथ देने के लिए तुम नहीं थी। मौजूद ही नहीं बल्कि मन से भी नहीं। 
अच्छा हुआ बुरे दिन बीत गए.. वक़्त के साथ अच्छा ये भी होता रहा कि तुम्हारी आदत भी कम हो गयी और मैंने अकेले अच्छे वक़्त तक आने का अपना सफ़र पूरा किया।
ठीक हुआ कि इस अच्छे दिनों तक आने के सफ़र में तुम साथ नहीं रही, नहीं तो मुझे उम्र भर लगता कि मैं तुम्हारे कारण नई सुबह देख पाया। 
जो होता है अच्छे के लिए होता है।
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मन रमता जोगी है. दुनिया भर की बातें सोचता है  पर दुनिया के छल कपट में ठगा ही जाता है। जब कभी चालक बनने की कोशिश की, दोस्तों ने परायेपन से पूरा नाम लेकर कहा (अपनेपन में बस निशु बुलाते हैं ) ,
“नितेश कुशवाह तुम ज्यादा बनने लगे हो “
फिर से जब पहले जैसा रहने लगा तो सबने कहा कि बचपना छोड़ो भी, बड़े हो जाओ.
परिणाम ये हुआ कि मन में  उठने वाली बातें मन में दबने लगी.
समय के साथ बचपना छूटा भी. कई कई बातें होती जिनके बारें में लगता कि किसी करीबी दोस्त को बताएँ, पर फिर मन नहीं किया. कि उन बातों के वाक्य-विन्यास भी ना थे ठीक से. अब ऐसी बातें कैसे बताई जाये. और कोई क्या सोचेगा अजीब बातों को सुनकर.

एक वक़्त पर दिमाग में अजीब अजीब कई कई बातें एक साथ चलने लगी/ या उठने लगी . 
शायद उठने ही लगी होगी.. खैर ठीक ठीक मेरी लेखनी की पकड़ में नहीं आता. 
वो भाव महसूस किया जा सकता है बार बार, पर एक बार ठीक से लिखा नहीं जा सकता.बिल्कुल ऐसे जैसे कई चीटियाँ चल रही हो दिमाग में. 
 
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जिन दिनों तुमसे बात नहीं होती थी, दुनिया जैसे काटने को दौड़ती थी. बात होने के दिनों में भी मैं कुछ ख़ास बात करता नहीं था. किसी से फोन पर बात करने का शऊर मुझे आज तक ना आया. बातें मैंने भी ख़ूब की पर जैसे नीरस सबकुछ.
 ह्म्म्म…हाँ….अच्छा..ठीक..क्यूँ… इससे आगे मुझे कुछ सुझा ही नहीं कभी..मेरी एक दोस्त थी.उससे जब भी बात होती. बात शुरू होने के 1 मिनट बाद हम एकदूसरे से कहने लगते कि कोई टॉपिक निकालो. ऐसे करके 1 मिनट बात और होती.फिर दोनों तरफ से बाय बोल दिया जाता. हाँ पर बात करते रहने से एक निबाह बना रहता या सब ठीक चल रहा हो ऐसा अंदेसा बना रहता. बात चाहे १० मिनट ही हो पर होनी चाहिए. इन दिनों जो उससे बात होती भी तो वैसी नहीं हैं. वो अनौपचारिकता बातों में नहीं है, जिनसे सब ठीक चलने का अंदेसा हो. बार बार मन की गांठ पड़ने से भी मन के रिश्ते वैसे नहीं रहते. फिर सब कुछ ठीक किया भी जा सकता है. पर मुझे शायद कुछ ठीक करने से ज़्यादा सुख उसकी बातें करने में ( यहाँ  लिखने में पढ़ा जाये ) आता है.
                      हाँ अब भी बातें तुमसे नहीं होती, अब भी दुनिया काटने को दौड़ती हो पर अब चमड़ी मजबूत हो गयी है. कि फ़र्क पड़ता नहीं अब कुछ भी.. हाँ बताना ये भी था कि अब भी अपनी पसंद की ही कॉलर ट्यून है.
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                पता नहीं याद के इस टुकड़े को यहाँ रखना ठीक है या नहीं. क्यूँकी इसका कोई भी सिरा  एन्जआयटी से नहीं जुड़ा है. ये जुड़ा है अलगाव  से, बिछड़ने से नहीं, बिछड़ना एक बड़ा भारी शब्द है जो अपने इस्तमाल के साथ बड़ा भारी  दुःख लेकर आता है.. इसलिए कहा कि ये अलगाव से जुड़ा है.. तो उससे अलग होने के बाद ऐसा कोई ख़ास दुःख नहीं आया जो किसी के बिछड़ने से आता है. जैसे हफ्तों भूख ना लगना, प्यास की सुध बुध ना रहना. किसी काम में मन ना लगना. मौसम की जानकारी ना रहना,ये सब सामान्य चीज़े बराबर चलती रही. नियत वक़्त पर, जिंदगी चलती रही वैसी ही जैसी चल रही थी. फ़र्क आया था वक़्त के उस हिस्से में जो उसके नाम रहा करता था.. वो  थोड़ा सा समय का टुकड़ा जैसे उस पर फफूंद उग आई थी या जैसे सीलन लग जाने पर कमरे की दीवार बार बार ध्यान खींचती है अपनी दीन दुर्दशा पर वैसे दशा में आ गया था . उस समय के खालीपन में एक स्थिरता थी, एक ऊब और एक बहुत खिंचापन था.
सोचता हूँ वो क्या था, जो अब तक भी बराबर बना हुआ है.किसी के जाने से सारा सब ठीक हो जाता है या प्रिय ना हो, मन  से उतर गया हो तो भुलाया  जा सकता है लेकिन वो जो वक़्त होता है किसी हिस्से का उसका एक अरसे तक ठीक ठीक ठिकाना नहीं लगता.. 
हम लोग उस समय का उपयोग किसी ऐसी जगह जरुर कर सकते हैं जिसमें दिमाग से ख़ूब ख़ूब काम लिया जा सके. बाकि एक दिन ये भी ठीक हो ही जाएगा. ऐसी उम्मीद तो कर ही सकते हैं. हैं ना ?   

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नितेश 
19-3-2022

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