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Wednesday, January 19, 2022

चाय पीने इतना वक़्त

अगर मरने के बाद हम सोचते तो ये ज़रुर सोचते कि "काश मौत ऐसे यूँ अचानक से ना आ गयी होती।"
आ भी गई होती तो घड़ी भर का वक़्त देती साथ मे चाय पीने जितना। कहती कि कुछ पल हैं अभी तुम्हारे पास। रिलैक्स! चाय पीने इतनी देर रुका जा सकता है। काश कि मौत की प्रक्रिया में कुछ ऐसे पलों की रियायत होती, जिनमें अपनों को अलविदा कहा जा सकता। प्यार का चेहरा घड़ी भर याद कर लेते। उन लड़ाइयों के लिए माफ़ी मांग लेते मन ही मन, जिनके लिए ईगो के चलते सारी उम्र ख़ुद से मुँह बचाते रहे। उन किताबों को शुक्रिया कह पाते जिनके ना जाने कितने एहसान हैं।
उन लेखकों को मन ही मन कह पाते कि "हमारे मन एक जैसे हैं" जिन्होंने हमारे मन की बात तब कह दी जब हम उस बात को कहने के लिए शब्दकोश के पन्ने पलट रहे थे।
गुनगुना लेते कोई पसंदीदा शे'र।
यक़ीन दिला पाते किसीको कि हम उसे पाना नहीं चाहते थे बस कि पल भर उसके साथ होना चाहते भर थे। या उसके साथ होकर उसे छूकर देखना भर चाहते थे। कि ख़ुद को दिला सके यक़ीन कि वो है सचमुच, इस जहाँ में है। कल्पना भर नहीं है। सचमुच है।
कितना कुछ किया जा सकते है बस चंद पल में। लगता है मैं जितना सोच चुका हूँ उतना कुछ। और फिर ये पल ख़त्म हो जाते। मौत ने अपनी चाय की प्याली ख़ाली कर दी होती।
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नितेश
18.01.2022

4 comments:

ना अपने बारें में ना तुम्हारे.. दुनिया के किसी हिस्से की बात!

ये भी मुमकिन है कि आँखें हों तमाशा ही न हो  रास आने लगे हम को तो ये दुनिया ही न हो    टकटकी बाँध के मैं देख रहा हूँ जिस को  ये भी हो सकता है...